Saturday, February 8, 2025

Salaam.Salaam kya hai? Salaam kise kahte hai? Salaam ka sahi Alfaaz.सलाम । सलाम क्या है ? सलाम किसे कहते हैं ? सलाम का सही अल्फाज।

 अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल लाहि व बरकातुह

Assalamualaikum warahmatullahi wabarakatuhu 


मेरे प्यारे दोस्तों,  आज हम जानेंगे सलाम के बारे में। जब हम किसी मुस्लिम भाई बहन को देखते हैं जब वह आपस में मिलते हैं तो बात शुरू करने से पहले वह सलाम करते हैं ।
Mere pyare doston. Aaj ham jaanenge Salaam ke baare mein. Jab ham kisi Muslim bhai ya bahan ko dekhte hain to jab vah apas main milte hain to baat shuroo karne se pahale Salaam karte hain.



सलाम क्या है? सलाम किसे कहते हैं?Salaam kya hai? Salaam Kise Kahte Hain?

जब दो मुसलमान मिलते हैं तो बात शुरू करने से पहले दुआ वाली अल्फाज़ जो अस्सलामु अलैकुम कहते हैं उसे सलाम कहते हैं। हर मुसलमान चाहे वह छोटा हो या बड़ा हो चाहे वह बूढ़ा हो या जवान हो हर मुसलमान को एक दूसरे से मिलने पर सलाम करना फर्ज है। और अल्लाह पाक फरमाते है कुरान मजीद में सूरह नंबर 6 आयत नंबर 54 में 

और जो लोग हमारी आयतों पर ईमान लाए हैं तुम्हारे पास ऑंए तो तुम सलामुन अलैकुम (तुम पर ख़ुदा की सलामती हो) ।
यानि अल्लाह ताला कुरान में ये फरमाते हैं जब एक मुसलमान दूसरे मुसलमान से मिले तो अस्सलामु अलैकुम कहे।
मेरे प्यारे दोस्तों अगर कोई आपको सलाम करे तो जवाब में आप उनको वअलैकुम अस्सलाम बोलना चाहिए।

क्योंकि अल्लाह ताला फरमाते हैं सूरह नंबर 4 आयत नंबर 86 मे ;

और जब कोई शख्स सलाम करे तो तुम भी उसके जवाब में उससे बेहतर तरीक़े से सलाम करो या वही लफ्ज़ जवाब में कह दो बेशक ख़ुदा हर चीज़ का हिसाब करने वाला है।

यानी अल्लाह ताला चाहते हैं एक ईमान वाले दूसरे ईमान वाले से मिले तो बेहतर तरीके से सलाम करें और उसके बेहतर तरीके से जवाब दें क्योंकि सलाम एक दुआ है हम एक दूसरे से दुआ दे रहे हैं और दुआ ले रहे हैं।

सबको सलाम करना फ़र्ज़ हैं लेकिन बढ़े उम्र वाले लोग छोटे उम्र वाले को सलाम करे तो सुन्नत हैं।

अक्सर आप लोग कुछ लोगों को गलत सलाम करते हुए सुना होगा जैसे शामवालेकुम या शावालेकुम वगैरह ऐसे सलाम करने से सलाम का माना बिल्कुल बदल जाता है या उल्टा हो जाता है जैसे तुम पर मौत हो और लोग अलग अलग तरीके सलाम करते हैं यानी अलग अलग अल्फाज़ में इनके अलग अलग माने हो जाते हैं इसलिए आप लोग सही अल्फाज़ में सलाम करें।


Jab do Musalman milte Hain to baat shuru karne se pahle Dua wali Alfaaz jo Assalamualaikum kahte Hain use Salaam kahte Hain.

Har Musalman chahe vah Chhota ho ya badha ya Budha ho ya Jawan har Musalman ko ek dusre se milne per Salaam karna farj hai. Aur Allah Pak  farmate Hain Quran Majid mein surah number 6 ayat number 54 me.

Aur jo log hamare ayaton per Imaan lae Hain tumhare pass Aaye to Tum Assalamualaikum ( Tum per khuda ki salamati Ho )

Yani Allah Tala Quran main yah farmate Hain ek Musalman dusre Musalman Se mile to Assalamualaikum kahe.

Mere pyare doston agar Koi apko Salaam Kare to jawab main aap unko walaikum assalam bolna chahiye.

Kyunki Allah Tala farmata Hai Surah number 4 Aayat number 84 main.

Aur jab Koi  shakh Salaam Kare to tum bhi uske jawab mein uske behtar tarike se Salaam karo ya vahi lafj jawab mein kah do beshak khuda har chij ka hisab karne wala hai.

Yani Allah Tala chahte Hain ek Imaan wale dusre Imaan wale se mile to behtar tarike se Salaam Karen aur uske behtar tarike se jawab de kyunki Salaam ek Dua hai Ham ek dusre se Dua de rahe hain aur Dua le rahe hain.

Sabko Salaam karna farj hai lekin badhe umar wale log chhote umar wale se Salaam Kare to Sunnat hai.

Aksar aap log kuchh logon Ko galat salaam karte hue Suna hoga Jaise Shamwalekum ya shaawalekum wagairah aise Salam karne Se salam ka Mana bilkul Badal jata hai ya ulta ho jata hai Jaise Tum per maut Ho aur alag alag log alag alag tarike salaam karte hain yani alag alag Alfaaz mein alag alag Mane Ho jaate Hain. 

सलाम करना और जवाब देने का सही तरीके। Salaam karna aur jawab dene ka sahi tarika.

सलाम करना ; Salaam Karna

अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल लाहि व बरकातुह
( तुम पर सलामती हो और अल्लाह की रहमत और उसकी बरकते हो )
Assalamualaikum warahmatullahi wabarakatuhu 

( Tum per salamati Ho aur Allah ki Rehmat aur uski barkate ho )

और जवाब ; Aur Jawab

व अलैकुमुस सलाम व रहमतुल लाहि व बरकातुह

( और तुम पर भी सलामती हो और अल्लाह की
रहमत और उसकी बरकतें हो )

Walaikum assalam wa rahmatullahi wa  barkatuhu.

( Aur tum par bhi salaamati ho aur ALLAH ki rahmat aur uski barkate ho.)

 













Thursday, January 9, 2025

नशा - एक युद्ध नशा के विरुद्ध : Intoxication/Nasha. Ek Yudh Nasha Ke Virudh

 

                    

               नशा   


अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाही बरकातुह!
मेरे प्यारे दोस्तो 

नशा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक विकराल समस्या बन चुकी है। हमारे समाज का भी एक बड़ा हिस्सा जो तकरीबन 30 करोड़ है इस बीमारी से ग्रसित है और यह तादाद बढ़ती जा रही है। यह ऐसी बीमारी है जो इन्सान के जिस्म और दिमाग के साथ उसके पूरे वजूद को तबाह कर देती है। उसकी ज़िन्दगी जानवरों से भी बदतर हो जाती है। नशा एक ऐसी बुराई है जिसमें इन्सान का अनमोल जीवन दुनिया में ही नर्क बन जाता है और वह मरने से पहले ही वह मर्णावस्था में चला जाता है। धीरे-2 यह हमारे समाज को निगलता जा रहा है, इस लानत से पूरे मुल्क में लाखों जाने चली जाती हैं और न जाने कितने घर-खेत उसके इलाज में बिक जाते हैं। अगर हमने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो बहुत देर हो जाएगी और आप को पता भी नहीं चलेगा कि कब आपका अपना भी कोई इसकी चपेट में आ गया।

  

  नशा क्या है? 

 वह नशीला पदार्थ जिसके सेवन से इन्सान को उसकी लत लग जाए, उसके अलावा कुछ और न सूझे, थोड़ी देर के लिए अक्ल काम करना बन्द कर दे, होश न रहे, खुद को सम्भालना मुश्किल हो जाए। नशीले पदार्थ दो तरह के होते हैं एक वह जो थोड़ी देर के लिए इन्सान की सूझ बूझ समाप्त कर दे और ज़्यादा सेवन से शारीरिक नुकसान हो, उसको नारकोटिक्स कहते हैं और दूसरा इन्सान को धीरे धीरे पागलपन की हद तक ले जाए, उसको साइकोट्रोपिक कहते हैं। शराब, भांग, चरस, गांजा, अफीम, स्मैक, कोकेन, ब्राउन शुगर वग़ैरह ऐसे ही नशीले पदार्थ हैं और कुछ नशे जैसे तम्बाकू, गुटका, सिगरेट और बीड़ी हैं जो बदमस्त तो नहीं करते लेकिन शारीरिक नुकसान करते हैं और लत लगा देते हैं। इन नशीले पदार्थों से हर वर्ग और जाति के लोग ग्रसित हैं। इन्सान की यह कमज़ोरी होती है कि वह इनका इस्तेमाल थोड़ा थोड़ा ही करता है लेकिन कुछ दिनों में वह इसका आदी बन जाता है और बात ज़हरीले इन्जेक्शन तक पहुंच जाती है।

 नशे के व्यक्तिगत दुष्परिणाम 

 नशा एक ऐसा ज़हर है जो इन्सान की ज़िन्दगी को अन्दर से खोखला कर देता है। यह लानत इन्सान को उसकी इज़्ज़त, सेहत और खुशियों से वचिंत कर देती है। यह इन्सान के फ़ैसला करने की तमीज़ को छीन लेता है जिसकी वजह से वह अपना अच्छा बुरा नहीं जान पाता। नशा इन्सान के स्वभाव और व्यवहार को भी ख़राब कर देता है वह भुलक्कड़, चिड़चिड़ा, गुस्सैल, खुदगर्ज और लापरवाह बन जाता है जिससे उसके सगे भी उससे दूर होने लगते हैं और वह बिलकुल अकेला होकर रह जाता है और अकसर वह धोका, चोरी और दूसरे अपराध की तरफ़ भी चला जाता है।

  परिवारिक दुष्परिणाम 

 नशा करने वाले को लगता है कि यह सिर्फ उसका मामला है लेकिन यह उसके पूरे परीवार की जड़ों को खोखला करता है। वह प्यार जो कभी उसके घर में खुशबू की तरह महकता था अब नफरत और मायूसी में बदल जाता है। आए दिन बीवी बच्चों से मार-पीट आम बात हो जाती है। वह मासूम बच्चे जो अपने पिता के प्यार और दुलार के इन्तिजार में होते हैं एक लापरवाह और खुदगर्ज इन्सान का सामना करते हैं। यह कैसी तबाही है जिसे इन्सान खुद अपने हाथों से अपने घर में ले आता है। भला कोई चाहेगा कि अपने ही हाथों से अपने घर में आग लगा दे और उसमें उसके बीवी बच्चे झुलस जाएं ? हरगिज़ नहीं ! लेकिन नशा ऐसी ही तबाही लाता है जिसे नशा करने वाला समझ नहीं पाता। नशे की लत से इन्सान पहले तो अपनी कमाई का ज़्यादातर हिस्सा नशे पर खर्च कर देता है उसके बीवी बच्चे छोटी छोटी ज़रूरतों के लिए तरसते रहते हैं। उनकी सारी खुशियां छिन जाती हैं और एक समय ऐसा आता है जबकि वह कुछ भी नहीं कमा पाता और खुद अपने घर वालों पर बोझ बन जाता है। नशा करने वालों के बच्चे अपने पिता की ऐसी हालत देख कर दिमाग़ी तनाव से ग्रसित हो जाते हैं। उन्हें अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए न जाने क्या क्या करना पड़ता हैं। पढ़ाई लिखाई और परवरिश से वंचित होकर वह भी उसी डगर पर चल पड़ते हैं।

 सामाजिक दुष्परिणाम

कश लगाता देख कर आज का नवजवान खुद को रोक नहीं पाता। फैशन और मार्डन बनने के नाम पर अधिकतर नवजवान नशे का शिकार हो रहे हैं। सिगरेट नुमा टॉफी और मीठी सुपारी खिलाकर और कोल्ड ड्रिंक के नाम पर पॉवर बूस्टर वगैरह पिलाकर बच्चों को पहले से ही इन ख़तरनाक चीज़ों से मुहब्बत पैदा करा दी जाती है। नवजवान देश का भविष्य होते हैं और समाज की तरक्की में अहम भूमिका निभाते हैं। नशे में लिप्त नवजवान अनपढ़ और बेरोज़गारी की वजह से अपराध की तरफ आकर्षित होते हैं। जिससे समाज में चोरी, राहजनी, आवारागर्दी, बलात्कार और हत्या आम बात हो जाती है। लड़के-लड़कियां नशा करने के खर्च को पूरा करने की लिए अपने घरों से पहले चोरियां करते हैं और अगर इससे भी बात नहीं बनती तो देह व्यवपार में भी चले जाते हैं। भला यह कैसे सम्भव हो सकता है कि कोई समाज तरक्की करे जबकि उस समाज की युवा पीढ़ी नशे जैसी लानत में लिप्त हों ?

इसलामी शिक्षाएं और इसका हल

 इसलाम ने नशे को उम्मुल ख़बाइस और उम्मुल फहाइश बताया है। यानि नशा तमाम शैतानी काम, घिनावने जुर्म की और तमाम बेशर्मी के कामों की जननी है। ऊपर बताई गई तमाम बुराइयां सिर्फ और सिर्फ नशा करने का ही दुष्परिणाम हैं। पवित्र कुरआन नशे को न केवल हराम बल्कि नापाक बताता है। यानि यही नहीं कि इसको इस्तेमाल करने से बचा जाए बल्कि इससे नफरत करते हुए दूर भी रहा जाए। खुदा ने इन्सान को बेकार नहीं पैदा किया कि वह बाकी तमाम जानवरों की तरह खाए पिए और मर जाए बल्कि उसके लिए एक महान उददेश्य है जिसकी वजह से वह तमाम प्राणियों में सबसे श्रेष्ठ है। उसका असल जौहर उसकी नैतिकता, इन्सानियत, चरित्र और आचरण है, नशा । उससे यह सब छीन कर उसको जानवरों की श्रेणी में ले आता है।

शराब नहीं उसकी ज़्यादती गलत है?

 यह तर्क अकसर नशा करने वाले देते हैं। कहते हैं कि हर चीज़ चाहे पानी हो या खाना उसका बहुतायत घातक है। इसलिए मादक पदार्थ भी थोड़ी मात्रा में सही है, हां उसका बहुतायत घातक है। शराब और दूसरे मादक पदार्थों के साथ खाने पीने की चीज़ो की तुलना करने का तर्क जहालत पर आधारित है। शराब और दूसरे मादक पदार्थ इस लिए नहीं हराम हैं कि उनका बहुतायत गलत है बल्कि वह पदार्थ सेहत, मानसिकता और आचरण को खराब करते हैं इसलिए नापाक, गन्दे और शैतानी हैं। क्या कोई व्यक्ति किसी ऐसे पदार्थ को जिसको वह गन्दा समझता हो, एक बूदं को तो सही जाने और एक गिलास को गलत? हरगिज़ नहीं! इसलिए पैगम्बरे इसलाम ने बताया कि जो पदार्थ बड़ी मात्रा में नशा पैदा करते हैं उसकी कम मात्रा भी हराम है (हदीस)। क्यूंकि आमतौर पर यही होता है कि हर नशे का गुलाम, उसकी शुरुआत थोड़ी मात्रा से ही करता है।

गुटका तम्बाकू से नशा नहीं होता 

 अकसर गुटका, तम्बाकू और सिगरेट वाले यह तर्क देते हैं कि इन चीज़ों से हम बदमस्त नहीं होते लिहाजा यह चीजें नशावर नहीं होती। आप उनको समझाइये जो बड़ा नशा करते हैं।... यह बात तो पहले ही बताई जा चुकी है कि नशावर चीजें सिर्फ अपने नशे के लिए ही नहीं बल्कि उसके दुष्परिणाम यानि शारीरिक व मानसिक, स्वास्थ्य की हानि के लिए भी ग़लत हैं, इसीलिए शैतानी काम हैं। जिस तरह आप शराब पी कर मन्दिर-मस्जिद, स्कूल-कालेज या किसी अधिकारी क सामने नहीं जा सकते उसी तरह आप पान, गुटका सिगरेट भी चबाते हुए नहीं  जा सकते, यह अच्छे आचरण के भी ख़िलाफ है। दूसरी बात अगर आप इसको सेहत के लिए अच्छा समझते हैं और कहते हैं कि इससे नशा नहीं होता तो खुद भी सेवन कीजिए और अपने बच्चों को भी लाकर दीजिए। हर साल पूरी दुनिया में 80 लाख और पूरे भारत में 10 लाख मौतों की वजह तम्बाकू ही है चाहे वह खैनी, गुटका या सिगरेट के रूप में हो और यह आंकड़े शराब और उस जैसे दूसरे नशीले पदार्थो से कहीं ज़्यादा है।

नशेवर पदार्थों पर सम्पूर्ण पाबन्दी

  पैगम्बरे इसलाम ने फर्माया कि शराब से जुड़े हुए दस लोग बराबर के लानती हैं 1. अपने लिए बनाने वाला 2. दूसरों के लिए बनाने वाला 3. पीने वाला 4. पिलाने वाला 5.पहुंचाने वाला 6. जिसको पहुंचाई जाए 7. बेचने वाला 8. ख़रीदने वाला 9. किसी को भेंट देने वाला और 10. इसकी कमाई खाने वाला। जब इसलाम ने शराब और नशे को हराम किया तो जो लोग नशा करते थे उन्होने अपने घरों की सारी शराब फेंक दी और साथ में उन बर्तनो को भी फेंक दिया जिसमें वह रखी, परोसी, पी और पिलाई जाती थी।

यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है 

 कि देश के शासक एक तरफ तो नशा विरोधी अभियान चलाते हैं, सिगरेट-तम्बाकू पर कैन्सर की चेतावनी छपवाते हैं और दूसरी तरफ़ शराब बेचने के परमिट भी दिए जाते हैं और इस के ऊपर भारी टैक्स लगाकर मोटी कमाई भी करते है। क्या इस तरह से समाज सुधार होगा? याद रखिए इस लानत से हमें अपने को और अपने प्यारों को खुद ही बचाना होगा।

आइये !

हम संकल्पित हों कि अपने देश को नशा मुक्त कर के एक बेहतर समाज बनाएंगें और अपने खुदा को राज़ी करने की कोशिश करेंगें ।



सौजन्य से :

وحدت اسلامی ہند زیر اہتمام
WAHDAT-E-ISLAMI
वहदत-ए-इस्लामी हिन्द पूरबी यू.पी.
473/136, रूपनगर, निकट चाँद मस्जिद, सीतापुर रोड - लखनऊ (यू.पी.) मो0 : 9450428374

Nadeem Arif 

Varanasi 
WhatsApp number - +91 97928 61523

Thursday, May 6, 2021

सफलता - सफलता की चाबी; Success. Key To Success

Eagle Network sbz

By Shahina , Delhi





हम आप सभी इसकी आकांक्षा करते हैं, इसके बारे में बात करते हैं, इसे मिलने वालों से जलने लगते हैं, हम इसके बारे में सोचते हैं, इसके लिए लड़ते हैं।  यह वास्तव में इसके लायक है।  सफलता हमारे उद्देश्य तक पहुंचने के साथ आती है और यह हमें अतुलनीय संतुष्टि और खुशी प्रदान करती है।  यह हमें हर 

दिन खुश रहने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है, यदि हम हर दिन छोटे-छोटे लक्ष्य प्राप्त करते हैं और कदम दर कदम हम अपने महान सपने के करीब पहुंचते जाएंगे।

 कॉलेज में अपनी पढ़ाई को याद करें, जब आपको काम और अध्ययन को संयोजित करना था;  जब आपके पास बहुत तनावपूर्ण समय था, जब आपका एकमात्र समाधान सेमेस्टर के माध्यम से प्राप्त करने के लिए एक कस्टम टर्म पेपर था।  लेकिन आपने इसे खड़ा किया।  हर कार्यकाल में छोटे लक्ष्य प्राप्त करके, आखिरकार आप मुख्य उद्देश्य - सफल स्नातक स्तर तक पहुँच गए।  और इसीलिए आप एक सफल व्यक्ति हैं।  लेकिन एक समृद्ध व्यक्ति के गुणों में से एक यह है कि वह हमेशा पूर्णता के लिए प्रयास कर रहा है और कभी भी अपनी प्रशंसा नहीं करेगा।  तो, चलिए आगे बढ़ते हैं और खुद को विकसित करते हैं ... एक मिनट के लिए अपनी आँखें बंद करें और एक सफल व्यक्ति की कल्पना करें।  वह अमीर है या गरीब?  निश्चित रूप से, हममें से अधिकांश लोग सफलता को अमीर लोगों से जोड़ते हैं।  तो, सफलता और धन एक दूसरे से अविभाज्य हैं?  हां, ऐसा होने की संभावना है।  लेकिन धन किसी सफल व्यक्ति के लिए लक्ष्य नहीं है।  यह वैश्विक उद्देश्य तक पहुंचने के लिए सिर्फ एक कदम है।

 आपको क्या लगता है कि सफलता में कोई बाधा, कोई वस्तुनिष्ठ कारण हैं?  यह एक तथ्य है कि कुछ बाहरी कारण हैं, न कि आपके आधार पर, उदाहरण के लिए युद्ध, बाढ़ आदि।  और उद्देश्य ध्वनि कारणों के बारे में क्या?  यदि आप एक पाते हैं, तो हम आपके साथ बहस करेंगे।  लेकिन अब तक मैं कहता हूं कि कोई नहीं है !!!!  सभी कारण व्यक्तिपरक (आंतरिक) हैं और इस प्रकार - प्रत्येक व्यक्ति इन कारणों से छुटकारा पा सकता है, अपने आप में कुछ बदल सकता है।  हम अपने डर, परिसरों और अंतर के साथ सफलता प्राप्त करने में सबसे बड़ी बाधा बनाते हैं।  और फिर, सफलता की कुंजी क्या हैं?  निम्नलिखित विशेषताओं के माध्यम से पढ़ें और सोचें कि उनमें से कौन सी आपके पास है और जिसे आपको अभी भी हासिल करना है।
1- सबसे पहले हम अपने छोटे छोटे टारगेट को पूरा करना होगा ।

 2- स्पसष्ट उद्देश्य।  लक्ष्य के बिना कोई भी उपलब्धि संभव नहीं है।  अद्भुत चालक दल के साथ एक अच्छी तरह से सुसज्जित जहाज कहीं नहीं पहुंचेगा अगर इसमें दिशा का कोई कोर्स नहीं है।

 3- सटीक रणनीति।  अनियोजित सफलता एक नियोजित हार है।  सटीक और तार्किक रणनीति भव्य परियोजनाओं को साकार करने में मदद करती है।  एक सफल व्यक्ति हर दिन अपनी महान योजना के एक छोटे हिस्से को पूरा करता है।  अगर आप अपनी योजना पर अड़े रहेंगे, तो आप अपनी हर चीज को महसूस कर पाएंगे।  और अगर आप चाहते हैं, तो आपके पास एक क्षमता है।

 4- सकारात्मक दृष्टिकोण।  सकारात्मक सोच, दुनिया के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण अद्भुत काम करते हैं।  आप उस दुनिया में रहते हैं जिसे आप अपने लिए बनाते हैं।  आप एक अद्भुत दुनिया में रहना चाहते हैं - कुछ अद्भुत के बारे में सोचो!  असफलताओं से डरना बंद करें और आप अपनी सफलता तक पहुंचेंगे।

 5- सफलता में विश्वास।  विश्वास आपकी क्षमता को मजबूत करता है, और संदेह इसे नष्ट कर देते हैं।  यदि आपकी कुछ इच्छा है, तो अपने सभी संदेहों को पीछे छोड़ दें।  बस इसके एहसास की संभावना पर विश्वास करें और आपके रास्ते में इतनी बाधाएं नहीं आएंगी।

 6- शिक्षा और प्रशिक्षण। बिना किसी कार्रवाई के अपनी इच्छाओं के बारे में जागरूक रहने से कुछ नहीं होगा।  केवल कार्यों, ज्ञान द्वारा समर्थित बड़ी सफलता मिलेगी।  लगातार प्रशिक्षण, आपके पेशेवर ज्ञान का निरंतर सुधार, - ये ऐसी विशेषताएं हैं जो एक सफल व्यक्ति को अलग करती हैं।  हमारी दुनिया कभी भी बदल रही है, और केवल अपने नए ज्ञान को लागू करने की शर्त पर आप समय के साथ तालमेल रख सकते हैं।

 7- आत्म-प्रतिष्ठा।  यह हमें बेहतर बनाने में मदद करता है, हमारे परिसरों और आशंकाओं को दूर करता है, अंतर से छुटकारा दिलाता है।  याद रखें, कि सब कुछ केवल आप पर निर्भर करता है;  आप अपने भाग्य, अपनी सफलता और खुशी के स्वामी हैं।  और यदि आप उपरोक्त सभी गुणों के अधिकारी नहीं हैं, तो आप इन सुविधाओं को स्वयं सुधारने में सक्षम होंगे।  केवल एक चीज जो आप पर निर्भर नहीं करती है वह मजबूत इच्छा है;  यह हमें प्रकृति द्वारा दिया गया है।

 8- आत्म-विश्वास हमें शीर्ष परिणाम प्राप्त करने में मदद करता है जहां इसके लिए कोई आधार नहीं है।  अपने परिसरों के साथ लड़ते हुए, व्यक्ति आदर्श के करीब पहुंच रहा है और काम का सर्वश्रेष्ठ बनाता है।

जाते जाते एक एक बात बता दूं कि यह लेख सफलता के दर्शन की एक प्रस्तुति मात्र है।  ये केवल शब्द हैं, हालांकि बुद्धिमान और सत्य हैं।  लेकिन आप अभी से अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए इस दर्शन को एक शक्तिशाली उपकरण में बदल सकते हैं।  और तब दर्शन पुनर्जीवित होगा और आपको इससे बहुत लाभ होगा।  यह सरल दर्शन आपकी रणनीति, सफलता प्राप्त करने में आपका मार्गदर्शक सूत्र बन जाएगा।  मुझे यकीन है कि यह आपको बहुत सफलता दिलाएगा।
मैं कामना करता हूँ  आपकी उज्जवल भविष्य की।



We all aspire for it, talk about it, start burning it with those we meet, we think about it, fight for it.  Is it really worth it.  Success comes with reaching our objective and it provides us with incomparable satisfaction and happiness.  It gives us a unique opportunity to be happy every day, if we achieve small goals every day and step by step we will get closer to our great dream.

  Recall your studies in college, when you had to combine work and study;  When you had a very stressful time, when your only solution was a custom term paper to get through the semester.  But you stood it up.  By achieving small goals every term, you finally reach the main objective - successful graduation.  And that's why you are a successful person.  But one of the qualities of a rich person is that he is always striving for perfection and will never praise himself.  So, let's go ahead and develop ourselves ... close your eyes for a minute and imagine a successful person.  Is it rich or poor?  Certainly, most of us associate success with rich people.  So, success and wealth are inseparable from each other?  Yes, it is likely to happen.  But wealth is not the goal of any successful person.  This is just one step to reach the global objective.

  What do you think are the obstacles to success, any objective reason?  It is a fact that there are some external causes, not your basis, for example war, flood etc.  And what about objective sound reasons?  If you find one, we will argue with you.  But so far I say there is none !!!!  All causes are subjective (internal) and thus - each person can get rid of these causes, change something in themselves.  We form the biggest obstacle to achieving success with our fears, complexes and differences.  And then, what are the keys to success?  Read through the following features and think about which of them you have and which you still have to achieve.
 1- First we have to meet our small target.

  2- Clear purpose.  No goal is possible without a goal.  A well-equipped ship with amazing crew will reach nowhere if it has no course of direction.

  3- Accurate strategy.  Unplanned success is a planned defeat.  Accurate and logical strategy helps in realizing grand projects.  A successful person fulfills a small part of his great plan every day.  If you stick to your plan, you will be able to feel everything you have.  And if you want, you have a capability.

  4- Positive attitude.  Positive thinking, positive outlook for the world work wonders.  You live in the world that you make for yourself.  You want to live in a wonderful world - think of something amazing!  Stop being afraid of failures and you will reach your success.

  5- Believe in success.  Confidence strengthens your ability, and doubts destroy it.  If you have some desire, leave all your doubts behind.  Just believe in the possibility of realizing it and there will not be so many obstacles in your way.

  6- Education and training.  Being aware of your desires without taking any action will do nothing.  Only actions, supported by knowledge will achieve great success.  Constant training, continuous improvement of your professional knowledge, - these are the characteristics that distinguish a successful person.  Our world is ever changing, and you can keep pace with time only on the condition of applying your new knowledge.

  7- Self-Esteem.  It helps us improve, removes our premises and apprehensions, gets rid of difference.  Remember, that everything depends only on you;  You are the master of your destiny, your success and happiness.  And if you do not possess all the above qualities, you will be able to improve these facilities yourself.  The only thing that does not depend on you is strong desire;  It is given to us by nature.

  8- Self-confidence helps us achieve top results where there is no basis for it.  Fighting with his complexes, the person is approaching the ideal and makes the best of the work.

 Let me tell you one thing while going that this article is only a presentation of the philosophy of success.  These are mere words, though intelligent and true.  But from now on you can turn this philosophy into a powerful tool to improve your life.  And then darshan will revive and you will benefit greatly from it.  This simple philosophy will become your strategy, your guide in achieving success.  I am sure it will bring you a lot of success.
 I wish you a bright future

Monday, November 30, 2020

तैरती हुई मस्जिद

 Eagle Network and

By Shahina, Delhi -53


तैरती हुई मस्जिद

दोस्तों आज हम बात करेंगे हज़रत फ़ात्मातुज़हरा मस्जिद या मस्जिदे रहमत के बारे में इससे 

पहले  हम दो मस्जिदों का जिक्र पढ़ चुके हैं जिसके लिंक 

पोस्ट के आखिर में मौजूद हैं  जिसमे #मिट्टी_वाली_मस्जिद और #नीली_मस्जिद का ज़िक्र है।




आज हम बात कर रहे हैं मस्जिद ए रहमा की इसे तैरने वाली मस्जिद भी कहा जाता है जैसा कि आप तस्वीर में देख रहे हैं यह समंदर के ऊपर बनाई गई है इसमें एक वक्त में 2300 इबादत गुजार एक साथ इबादत कर सकते हैं यह मस्जिद सऊदी अरब के जिद्दा शहर में सन1985 में तामीर की गई।


सतह समंदर पर 2400 स्क़वायर मीटर की बनने वाली ये दुनिया की पहली आलीशान मस्जिद है।इसके बाहरी हिस्से में 52 गुम्बद बनाये गए हैं जबकि इस मस्जिद में कुल 56 खिड़कियां हैं।

 शाम के वक़्त डूबते सूरज की रौशनी में लाल सागर के ऊपर बनी इस मस्जिद की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है अगर आप जिद्दा शहर में है तो आपको ज़रूर इस मस्जिद में एक बार नमाज़ अदा करनी चाहिए।

आज की कड़ी में बस इतना ही 

#पंजपूरा_की_आवाज़ आपके लिए लाएंगे एक नई मस्जिद की जानकारी तब तक के लिए इजाजत दीजिये

 अल्लाह हाफिज।

मोहम्मद मुर्शीद


Friday, November 27, 2020

मुंशी प्रेमचंद की कहानी

 आज की कड़ी में  😰😰😰मुंशी प्रेम चंद की कहानी ईदगाह बहुत याद आई ¶¶

रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभाव है। वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, यानी संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गॉंव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर में सुई-धागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर पर भागा जाता है। जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें। ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी। तीन कोस का पेदल रास्ता, फिर सैकड़ों आदमियों से मिलना-भेंटना, दोपहर के पहले लोटना असम्भव है। लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोजा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं, लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके हिस्से की चीज है। रोजे बड़े-बूढ़ो के लिए होंगे। इनके लिए तो ईद है। रोज ईद का नाम रटते थे, आज वह आ गई। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह क्यों नहीं चलते। इन्हें गृहस्थी चिंताओं से क्या प्रयोजन! सेवैयों के लिए दूध ओर शक्कर घर में है या नहीं, इनकी बला से, ये तो सेवेयां खाएँगे। वह क्या जानें कि अब्बाजान क्यों बदहवास चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं। उन्हें क्या खबर कि चौधरी ऑंखें बदल लें, तो यह सारी ईद मुहर्रम हो जाए। उनकी अपनी जेबों में तो कुबेर काधन भरा हुआ है। बार-बार जेब से अपना खजाना निकालकर गिनते हैं और खुश होकर फिर रख लेते हैं। महमूद गिनता है, एक-दो, दस,-बारह, उसके पास बारह पैसे हैं। मोहनसिन के पास एक, दो, तीन, आठ, नौ, पंद्रह पैसे हैं। इन्हीं अनगिनती पैसों में अनगिनती चीजें लाएँगें— खिलौने, मिठाइयां, बिगुल, गेंद और जाने क्या-क्या।

और सबसे ज्यादा प्रसन्न है हामिद। वह चार-पॉँच साल का गरीब सूरत, दुबला-पतला लड़का, जिसका बाप गत वर्ष हैजे की भेंट हो गया और मॉँ न जाने क्यों पीली होती-होती एक दिन मर गई। किसी को पता क्या बीमारी है। कहती तो कौन सुनने वाला था? दिल पर जो कुछ बीतती थी, वह दिल में ही सहती थी ओर जब न सहा गया,. तो संसार से विदा हो गई। अब हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है और उतना ही प्रसन्न है। उसके अब्बाजान रूपये कमाने गए हैं। बहुत-सी थैलियाँ लेकर आएँगे। अम्मीजान अल्लहा मियाँ के घर से उसके लिए बड़ी अच्छी-अच्छी चीजें लाने गई हैं, इसलिए हामिद प्रसन्न है। आशा तो बड़ी चीज है, और फिर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती हे। हामिद के पॉंव में जूते नहीं हैं, सिर परएक पुरानी-धुरानी टोपी है, जिसका गोटा काला पड़ गया है, फिर भी वह प्रसन्न है। जब उसके अब्बाजान थैलियाँ और अम्मीजान नियमतें लेकर आएँगी, तो वह दिल से अरमान निकाल लेगा। तब देखेगा, मोहसिन, नूरे और सम्मी कहाँ से उतने पैसे निकालेंगे। अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन, उसके घर में दाना नहीं! आज आबिद होता, तो क्या इसी तरह ईद आती ओर चली जाती! इस अन्धकार और निराशा में वह डूबी जा रही है। किसने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को? इस घर में उसका काम नहीं, लेकिन हामिद! उसे किसी के मरने-जीने के क्या मतल? उसके अन्दर प्रकाश है, बाहर आशा। विपत्ति अपना सारा दलबल लेकर आये, हामिद की आनंद-भरी चितबन उसका विध्वसं कर देगी।

हामिद भीतर जाकर दादी से कहता है—तुम डरना नहीं अम्मॉँ, मै सबसे पहले आऊँगा। बिल्कुल न डरना। अमीना का दिल कचोट रहा है। गॉँव के बच्चे अपने-अपने बाप के साथ जा रहे हैं। हामिद का बाप अमीना के सिवा और कौन है! उसे केसे अकेले मेले जाने दे? उस भीड़-भाड़ से बच्चा कहीं खो जाए तो क्या हो? नहीं, अमीना उसे यों न जाने देगी। नन्ही-सी जान! तीन कोस चलेगा कैसे? पैर में छाले पड़ जाएँगे। जूते भी तो नहीं हैं। वह थोड़ी-थोड़ी दूर पर उसे गोद में ले लेती, लेकिन यहाँ सेवैयाँ कोन पकाएगा? पैसे होते तो लौटते-लोटते सब सामग्री जमा करके चटपट बना लेती। यहाँ तो घंटों चीजें जमा करते लगेंगे। मॉँगे का ही तो भरोसा ठहरा। उस दिन फहीमन के कपड़े सिले थे। आठ आने पेसे मिले थे। उस उठन्नी को ईमान की तरह बचाती चली आती थी इसी ईद के लिए लेकिन कल ग्वालन सिर पर सवार हो गई तो क्या करती? हामिद के लिए कुछ नहीं हे, तो दो पैसे का दूध तो चाहिए ही। अब तो कुल दो आने पैसे बच रहे हैं। तीन पैसे हामिद की जेब में, पांच अमीना के बटुवें में। यही तो बिसात है और ईद का त्यौहार, अल्ला ही बेड़ा पर लगाए। धोबन और नाइन ओर मेहतरानी और चुड़िहारिन सभी तो आएँगी। सभी को सेवेयाँ चाहिए और थोड़ा किसी को ऑंखों नहीं लगता। किस-किस सें मुँह चुरायेगी? और मुँह क्यों चुराए? साल-भर का त्योंहार हैं। जिन्दगी खैरियत से रहें, उनकी तकदीर भी तो उसी के साथ है: बच्चे को खुदा सलामत रखे, यें दिन भी कट जाएँगे।

गॉँव से मेला चला। ओर बच्चों के साथ हामिद भी जा रहा था। कभी सबके सब दौड़कर आगे निकल जाते। फिर किसी पेड़ के नींचे खड़े होकर साथ वालों का इंतजार करते। यह लोग क्यों इतना धीरे-धीरे चल रहे हैं? हामिद के पैरो में तो जैसे पर लग गए हैं। वह कभी थक सकता है? शहर का दामन आ गया। सड़क के दोनों ओर अमीरों के बगीचे हैं। पक्की चारदीवारी बनी हुई है। पेड़ो में आम और लीचियाँ लगी हुई हैं। कभी-कभी कोई लड़का कंकड़ी उठाकर आम पर निशान लगाता है। माली अंदर से गाली देता हुआ निकलता है। लड़के वहाँ से एक फलॉँग पर हैं। खूब हँस रहे हैं। माली को कैसा उल्लू बनाया है।

बड़ी-बड़ी इमारतें आने लगीं। यह अदालत है, यह कालेज है, यह क्लब घर है। इतने बड़े कालेज में कितने लड़के पढ़ते होंगे? सब लड़के नहीं हैं जी! बड़े-बड़े आदमी हैं, सच! उनकी बड़ी-बड़ी मूँछे हैं। इतने बड़े हो गए, अभी तक पढ़ते जाते हैं। न जाने कब तक पढ़ेंगे ओर क्या करेंगे इतना पढ़कर! हामिद के मदरसे में दो-तीन बड़े-बड़े लड़के हें, बिल्कुल तीन कौड़ी के। रोज मार खाते हैं, काम से जी चुराने वाले। इस जगह भी उसी तरह के लोग होंगे ओर क्या। क्लब-घर में जादू होता है। सुना है, यहाँ मुर्दो की खोपड़ियां दौड़ती हैं। और बड़े-बड़े तमाशे होते हें, पर किसी कोअंदर नहीं जाने देते। और वहाँ शाम को साहब लोग खेलते हैं। बड़े-बड़े आदमी खेलते हें, मूँछो-दाढ़ी वाले। और मेमें भी खेलती हैं, सच! हमारी अम्मॉँ को यह दे दो, क्या नाम है, बैट, तो उसे पकड़ ही न सके। घुमाते ही लुढ़क जाएँ।

महमूद ने कहा—हमारी अम्मीजान का तो हाथ कॉँपने लगे, अल्ला कसम।

मोहसिन बोल—चलों, मनों आटा पीस डालती हैं। जरा-सा बैट पकड़ लेगी, तो हाथ कॉँपने लगेंगे! सौकड़ों घड़े पानी रोज निकालती हैं। पॉँच घड़े तो तेरी भैंस पी जाती है। किसी मेम को एक घड़ा पानी भरना पड़े, तो ऑंखों तक अँधेरी आ जाए।

महमूद—लेकिन दौड़तीं तो नहीं, उछल-कूद तो नहीं सकतीं।

मोहसिन—हाँ, उछल-कूद तो नहीं सकतीं; लेकिन उस दिन मेरी गाय खुल गई थी और चौधरी के खेत में जा पड़ी थी, अम्मॉँ इतना तेज दौड़ी कि में उन्हें न पा सका, सच।

आगे चले। हलवाइयों की दुकानें शुरू हुई। आज खूब सजी हुई थीं। इतनी मिठाइयाँ कौन खाता? देखो न, एक-एक दूकान पर मनों होंगी। सुना है, रात को जिन्नात आकर खरीद ले जाते हैं। अब्बा कहते थें कि आधी रात को एक आदमी हर दूकान पर जाता है और जितना माल बचा होता है, वह तुलवा लेता है और सचमुच के रूपये देता है, बिल्कुल ऐसे ही रूपये।

हामिद को यकीन न आया—ऐसे रूपये जिन्नात को कहाँ से मिल जाएँगी?

मोहसिन ने कहा—जिन्नात को रूपये की क्या कमी? जिस खजाने में चाहें चले जाएँ। लोहे के दरवाजे तक उन्हें नहीं रोक सकते जनाब, आप हैं किस फेर में! हीरे-जवाहरात तक उनके पास रहते हैं। जिससे खुश हो गए, उसे टोकरों जवाहरात दे दिए। अभी यहीं बैठे हें, पॉँच मिनट में कलकत्ता पहुँच जाएँ।

हामिद ने फिर पूछा—जिन्नात बहुत बड़े-बड़े होते हैं?

मोहसिन—एक-एक सिर आसमान के बराबर होता है जी! जमीन पर खड़ा हो जाए तो उसका सिर आसमान से जा लगे, मगर चाहे तो एक लोटे में घुस जाए।

हामिद—लोग उन्हें केसे खुश करते होंगे? कोई मुझे यह मंतर बता दे तो एक जिनन को खुश कर लूँ।

मोहसिन—अब यह तो न जानता, लेकिन चौधरी साहब के काबू में बहुत-से जिन्नात हैं। कोई चीज चोरी जाए चौधरी साहब उसका पता लगा देंगे ओर चोर का नाम बता देगें। जुमराती का बछवा उस दिन खो गया था। तीन दिन हैरान हुए, कहीं न मिला तब झख मारकर चौधरी के पास गए। चौधरी ने तुरन्त बता दिया, मवेशीखाने में है और वहीं मिला। जिन्नात आकर उन्हें सारे जहान की खबर दे जाते हैं।

अब उसकी समझ में आ गया कि चौधरी के पास क्यों इतना धन है और क्यों उनका इतना सम्मान है।

आगे चले। यह पुलिस लाइन है। यहीं सब कानिसटिबिल कवायद करते हैं। रैटन! फाय फो! रात को बेचारे घूम-घूमकर पहरा देते हैं, नहीं चोरियाँ हो जाएँ। मोहसिन ने प्रतिवाद किया—यह कानिसटिबिल पहरा देते हें? तभी तुम बहुत जानते हों अजी हजरत, यह चोरी करते हैं। शहर के जितने चोर-डाकू हें, सब इनसे मुहल्ले में जाकर ‘जागते रहो! जाते रहो!’ पुकारते हें। तभी इन लोगों के पास इतने रूपये आते हें। मेरे मामू एक थाने में कानिसटिबिल हें। बरस रूपया महीना पाते हें, लेकिन पचास रूपये घर भेजते हें। अल्ला कसम! मैंने एक बार पूछा था कि मामू, आप इतने रूपये कहाँ से पाते हैं? हँसकर कहने लगे—बेटा, अल्लाह देता है। फिर आप ही बोले—हम लोग चाहें तो एक दिन में लाखों मार लाएँ। हम तो इतना ही लेते हैं, जिसमें अपनी बदनामी न हो और नौकरी न चली जाए। हामिद ने पूछा—यह लोग चोरी करवाते हैं, तो कोई इन्हें पकड़ता नहीं?

मोहसिन उसकी नादानी पर दया दिखाकर बोला..अरे, पागल! इन्हें कौन पकड़ेगा! पकड़ने वाले तो यह लोग खुद हैं, लेकिन अल्लाह, इन्हें सजा भी खूब देता है। हराम का माल हराम में जाता है। थोड़े ही दिन हुए, मामू के घर में आग लग गई। सारी लेई-पूँजी जल गई। एक बरतन तक न बचा। कई दिन पेड़ के नीचे सोए, अल्ला कसम, पेड़ के नीचे! फिरन जाने कहाँ से एक सौ कर्ज लाए तो बरतन-भॉँड़े आए।

हामिद—एक सौ तो पचार से ज्यादा होते है?

‘कहाँ पचास, कहाँ एक सौ। पचास एक थैली-भर होता है। सौ तो दो थैलियों में भी न आएँ?

अब बस्ती घनी होने लगी। ईइगाह जाने वालो की टोलियाँ नजर आने लगी। एक से एक भड़कीले वस्त्र पहने हुए। कोई इक्के-तॉँगे पर सवार, कोई मोटर पर, सभी इत्र में बसे, सभी के दिलों में उमंग। ग्रामीणों का यह छोटा-सा दल अपनी विपन्नता से बेखबर, सन्तोष ओर धैर्य में मगन चला जा रहा था। बच्चों के लिए नगर की सभी चीजें अनोखी थीं। जिस चीज की ओर ताकते, ताकते ही रह जाते और पीछे से आर्न की आवाज होने पर भी न चेतते। हामिद तो मोटर के नीचे जाते-जाते बचा।

सहसा ईदगाह नजर आई। ऊपर इमली के घने वृक्षों की छाया हे। नाचे पक्का फर्श है, जिस पर जाजम ढिछा हुआ है। और रोजेदारों की पंक्तियाँ एक के पीछे एक न जाने कहाँ वक चली गई हैं, पक्की जगत के नीचे तक, जहाँ जाजम भी नहीं है। नए आने वाले आकर पीछे की कतार में खड़े हो जाते हैं। आगे जगह नहीं हे। यहाँ कोई धन और पद नहीं देखता। इस्लाम की निगाह में सब बराबर हें। इन ग्रामीणों ने भी वजू किया ओर पिछली पंक्ति में खड़े हो गए। कितना सुन्दर संचालन है, कितनी सुन्दर व्यवस्था! लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सबके सब एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हें, और एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हें, और एक साथ खड़े हो जाते हैं, कई बार यही क्रिया होती हे, जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएँ, और यही ग्रम चलता, रहे। कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाएँ, विस्तार और अनंतता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं, मानों भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए हैं।


2

नमाज खत्म हो गई। लोग आपस में गले मिल रहे हैं। तब मिठाई और खिलौने की दूकान पर धावा होता है। ग्रामीणों का यह दल इस विषय में बालकों से कम उत्साही नहीं है। यह देखो, हिंडोला हें एक पैसा देकर चढ़ जाओ। कभी आसमान पर जाते हुए मालूम होगें, कभी जमीन पर गिरते हुए। यह चर्खी है, लकड़ी के हाथी, घोड़े, ऊँट, छड़ो में लटके हुए हैं। एक पेसा देकर बैठ जाओं और पच्चीस चक्करों का मजा लो। महमूद और मोहसिन ओर नूरे ओर सम्मी इन घोड़ों ओर ऊँटो पर बैठते हें। हामिद दूर खड़ा है। तीन ही पैसे तो उसके पास हैं। अपने कोष का एक तिहाई जरा-सा चक्कर खाने के लिए नहीं दे सकता।

सब चर्खियों से उतरते हैं। अब खिलौने लेंगे। अधर दूकानों की कतार लगी हुई है। तरह-तरह के खिलौने हैं—सिपाही और गुजरिया, राज ओर वकी, भिश्ती और धोबिन और साधु। वह! कत्ते सुन्दर खिलोने हैं। अब बोला ही चाहते हैं। महमूद सिपाही लेता हे, खाकी वर्दी और लाल पगड़ीवाला, कंधें पर बंदूक रखे हुए, मालूम होता हे, अभी कवायद किए चला आ रहा है। मोहसिन को भिश्ती पसंद आया। कमर झुकी हुई है, ऊपर मशक रखे हुए हैं मशक का मुँह एक हाथ से पकड़े हुए है। कितना प्रसन्न है! शायद कोई गीत गा रहा है। बस, मशक से पानी अड़ेला ही चाहता है। नूरे को वकील से प्रेम हे। कैसी विद्वत्ता हे उसके मुख पर! काला चोगा, नीचे सफेद अचकन, अचकन के सामने की जेब में घड़ी, सुनहरी जंजीर, एक हाथ में कानून का पौथा लिये हुए। मालूम होता है, अभी किसी अदालत से जिरह या बहस किए चले आ रहे है। यह सब दो-दो पैसे के खिलौने हैं। हामिद के पास कुल तीन पैसे हैं, इतने महँगे खिलौन वह केसे ले? खिलौना कहीं हाथ से छूट पड़े तो चूर-चूर हो जाए। जरा पानी पड़े तो सारा रंग घुल जाए। ऐसे खिलौने लेकर वह क्या करेगा, किस काम के!

मोहसिन कहता है—मेरा भिश्ती रोज पानी दे जाएगा सॉँझ-सबेरे

महमूद—और मेरा सिपाही घर का पहरा देगा कोई चोर आएगा, तो फौरन बंदूक से फैर कर देगा।

नूरे—ओर मेरा वकील खूब मुकदमा लड़ेगा।

सम्मी—ओर मेरी धोबिन रोज कपड़े धोएगी।

हामिद खिलौनों की निंदा करता है—मिट्टी ही के तो हैं, गिरे तो चकनाचूर हो जाएँ, लेकिन ललचाई हुई ऑंखों से खिलौनों को देख रहा है और चाहता है कि जरा देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता। उसके हाथ अनायास ही लपकते हें, लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते हें, विशेषकर जब अभी नया शौक है। हामिद ललचता रह जाता है। खिलौने के बाद मिठाइयाँ आती हैं। किसी ने रेवड़ियाँ ली हें, किसी ने गुलाबजामुन किसी ने सोहन हलवा। मजे से खा रहे हैं। हामिद बिरादरी से पृथक् है। अभागे के पास तीन पैसे हैं। क्यों नहीं कुछ लेकर खाता? ललचाई ऑंखों से सबक ओर देखता है।

मोहसिन कहता है—हामिद रेवड़ी ले जा, कितनी खुशबूदार है!

हामिद को सदेंह हुआ, ये केवल क्रूर विनोद हें मोहसिन इतना उदार नहीं है, लेकिन यह जानकर भी वह उसके पास जाता है। मोहसिन दोने से एक रेवड़ी निकालकर हामिद की ओर बढ़ाता है। हामिद हाथ फैलाता है। मोहसिन रेवड़ी अपने मुँह में रख लेता है। महमूद नूरे ओर सम्मी खूब तालियाँ बजा-बजाकर हँसते हैं। हामिद खिसिया जाता है।

मोहसिन—अच्छा, अबकी जरूर देंगे हामिद, अल्लाह कसम, ले जा।

हामिद—रखे रहो। क्या मेरे पास पैसे नहीं है?

सम्मी—तीन ही पेसे तो हैं। तीन पैसे में क्या-क्या लोगें?

महमूद—हमसे गुलाबजामुन ले जाओ हामिद। मोहमिन बदमाश है।

हामिद—मिठाई कौन बड़ी नेमत है। किताब में इसकी कितनी बुराइयाँ लिखी हैं।

मोहसिन—लेकिन दिन मे कह रहे होगे कि मिले तो खा लें। अपने पैसे क्यों नहीं निकालते?

महमूद—इस समझते हें, इसकी चालाकी। जब हमारे सारे पैसे खर्च हो जाएँगे, तो हमें ललचा-ललचाकर खाएगा।

मिठाइयों के बाद कुछ दूकानें लोहे की चीजों की, कुछ गिलट और कुछ नकली गहनों की। लड़कों के लिए यहाँ कोई आकर्षण न था। वे सब आगे बढ़ जाते हैं, हामिद लोहे की दुकान पररूक जात हे। कई चिमटे रखे हुए थे। उसे ख्याल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तबे से रोटियाँ उतारती हैं, तो हाथ जल जाता है। अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे तो वह कितना प्रसन्न होगी! फिर उनकी ऊगलियाँ कभी न जलेंगी। घर में एक काम की चीज हो जाएगी। खिलौने से क्या फायदा? व्यर्थ में पैसे खराब होते हैं। जरा देर ही तो खुशी होती है। फिर तो खिलौने को कोई ऑंख उठाकर नहीं देखता। यह तो घर पहुँचते-पहुँचते टूट-फूट बराबर हो जाएँगे। चिमटा कितने काम की चीज है। रोटियाँ तवे से उतार लो, चूल्हें में सेंक लो। कोई आग मॉँगने आये तो चटपट चूल्हे से आग निकालकर उसे दे दो। अम्मॉँ बेचारी को कहाँ फुरसत हे कि बाजार आएँ और इतने पैसे ही कहाँ मिलते हैं? रोज हाथ जला लेती हैं। हामिद के साथी आगे बढ़ गए हैं। सबील पर सबके सब शर्बत पी रहे हैं। देखो, सब कतने लालची हैं। इतनी मिठाइयाँ लीं, मुझे किसी ने एक भी न दी। उस पर कहते है, मेरे साथ खेलो। मेरा यह काम करों। अब अगर किसी ने कोई काम करने को कहा, तो पूछूँगा। खाएँ मिठाइयाँ, आप मुँह सड़ेगा, फोड़े-फुन्सियॉं निकलेंगी, आप ही जबान चटोरी हो जाएगी। तब घर से पैसे चुराएँगे और मार खाएँगे। किताब में झूठी बातें थोड़े ही लिखी हें। मेरी जबान क्यों खराब होगी? अम्मॉँ चिमटा देखते ही दौड़कर मेरे हाथ से ले लेंगी और कहेंगी—मेरा बच्चा अम्मॉँ के लिए चिमटा लाया है। कितना अच्छा लड़का है। इन लोगों के खिलौने पर कौन इन्हें दुआएँ देगा? बड़ों का दुआएँ सीधे अल्लाह के दरबार में पहुँचती हैं, और तुरंत सुनी जाती हैं। में भी इनसे मिजाज क्यों सहूँ? मैं गरीब सही, किसी से कुछ मॉँगने तो नहीं जाते। आखिर अब्बाजान कभीं न कभी आएँगे। अम्मा भी ऑंएगी ही। फिर इन लोगों से पूछूँगा, कितने खिलौने लोगे? एक-एक को टोकरियों खिलौने दूँ और दिखा हूँ कि दोस्तों के साथ इस तरह का सलूक किया जात है। यह नहीं कि एक पैसे की रेवड़ियाँ लीं, तो चिढ़ा-चिढ़ाकर खाने लगे। सबके सब हँसेंगे कि हामिद ने चिमटा लिया है। हंसें! मेरी बला से! उसने दुकानदार से पूछा—यह चिमटा कितने का है?

दुकानदार ने उसकी ओर देखा और कोई आदमी साथ न देखकर कहा—तुम्हारे काम का नहीं है जी!

‘बिकाऊ है कि नहीं?’

‘बिकाऊ क्यों नहीं है? और यहाँ क्यों लाद लाए हैं?’

तो बताते क्यों नहीं, कै पैसे का है?’

‘छ: पैसे लगेंगे।'

हामिद का दिल बैठ गया।

‘ठीक-ठीक पॉँच पेसे लगेंगे, लेना हो लो, नहीं चलते बनो।'

हामिद ने कलेजा मजबूत करके कहा तीन पैसे लोगे?

यह कहता हुआ व आगे बढ़ गया कि दुकानदार की घुड़कियाँ न सुने। लेकिन दुकानदार ने घुड़कियाँ नहीं दी। बुलाकर चिमटा दे दिया। हामिद ने उसे इस तरह कंधे पर रखा, मानों बंदूक है और शान से अकड़ता हुआ संगियों के पास आया। जरा सुनें, सबके सब क्या-क्या आलोचनाएँ करते हैं!

मोहसिन ने हँसकर कहा—यह चिमटा क्यों लाया पगले, इसे क्या करेगा?

हामिद ने चिमटे को जमीन पर पटकर कहा—जरा अपना भिश्ती जमीन पर गिरा दो। सारी पसलियाँ चूर-चूर हो जाएँ बचा की।

महमूद बोला—तो यह चिमटा कोई खिलौना है?

हामिद—खिलौना क्यों नही है! अभी कन्धे पर रखा, बंदूक हो गई। हाथ में ले लिया, फकीरों का चिमटा हो गया। चाहूँ तो इससे मजीरे काकाम ले सकता हूँ। एक चिमटा जमा दूँ, तो तुम लोगों के सारे खिलौनों की जान निकल जाए। तुम्हारे खिलौने कितना ही जोर लगाएँ, मेरे चिमटे का बाल भी बॉंका नही कर सकतें मेरा बहादुर शेर है चिमटा। सम्मी ने खँजरी ली थी। प्रभावित होकर बोला—मेरी खँजरी से बदलोगे? दो आने की है।

हामिद ने खँजरी की ओर उपेक्षा से देखा-मेरा चिमटा चाहे तो तुम्हारी खॅजरी का पेट फाड़ डाले। बस, एक चमड़े की झिल्ली लगा दी, ढब-ढब बोलने लगी। जरा-सा पानी लग जाए तो खत्म हो जाए। मेरा बहादुर चिमटा आग में, पानी में, ऑंधी में, तूफान में बराबर डटा खड़ा रहेगा।

चिमटे ने सभी को मोहित कर लिया, अब पैसे किसके पास धरे हैं? फिर मेले से दूर निकल आए हें, नौ कब के बज गए, धूप तेज हो रही है। घर पहुंचने की जल्दी हो रही हे। बाप से जिद भी करें, तो चिमटा नहीं मिल सकता। हामिद है बड़ा चालाक। इसीलिए बदमाश ने अपने पैसे बचा रखे थे।

अब बालकों के दो दल हो गए हैं। मोहसिन, महमद, सम्मी और नूरे एक तरफ हैं, हामिद अकेला दूसरी तरफ। शास्त्रर्थ हो रहा है। सम्मी तो विधर्मी हा गया! दूसरे पक्ष से जा मिला, लेकिन मोहनि, महमूद और नूरे भी हामिद से एक-एक, दो-दो साल बड़े होने पर भी हामिद के आघातों से आतंकित हो उठे हैं। उसके पास न्याय का बल है और नीति की शक्ति। एक ओर मिट्टी है, दूसरी ओर लोहा, जो इस वक्त अपने को फौलाद कह रहा है। वह अजेय है, घातक है। अगर कोई शेर आ जाए मियाँ भिश्ती के छक्के छूट जाएँ, जो मियाँ सिपाही मिट्टी की बंदूक छोड़कर भागे, वकील साहब की नानी मर जाए, चोगे में मुंह छिपाकर जमीन पर लेट जाएँ। मगर यह चिमटा, यह बहादुर, यह रूस्तमे-हिंद लपककर शेर की गरदन पर सवार हो जाएगा और उसकी ऑंखे निकाल लेगा।

मोहसिन ने एड़ी—चोटी का जारे लगाकर कहा—अच्छा, पानी तो नहीं भर सकता?

हामिद ने चिमटे को सीधा खड़ा करके कहा—भिश्ती को एक डांट बताएगा, तो दौड़ा हुआ पानी लाकर उसके द्वार पर छिड़कने लगेगा।

मोहसिन परास्त हो गया, पर महमूद ने कुमुक पहुँचाई—अगर बचा पकड़ जाएँ तो अदालम में बँधे-बँधे फिरेंगे। तब तो वकील साहब के पैरों पड़ेगे।

हामिद इस प्रबल तर्क का जवाब न दे सका। उसने पूछा—हमें पकड़ने कौने आएगा?

नूरे ने अकड़कर कहा—यह सिपाही बंदूकवाला।

हामिद ने मुँह चिढ़ाकर कहा—यह बेचारे हम बहादुर रूस्तमे—हिंद को पकड़ेगें! अच्छा लाओ, अभी जरा कुश्ती हो जाए। इसकी सूरत देखकर दूर से भागेंगे। पकड़ेगें क्या बेचारे!

मोहसिन को एक नई चोट सूझ गई—तुम्हारे चिमटे का मुँह रोज आग में जलेगा।

उसने समझा था कि हामिद लाजवाब हो जाएगा, लेकिन यह बात न हुई। हामिद ने तुरंत जवाब दिया—आग में बहादुर ही कूदते हैं जनाब, तुम्हारे यह वकील, सिपाही और भिश्ती लैडियों की तरह घर में घुस जाएँगे। आग में वह काम है, जो यह रूस्तमे-हिन्द ही कर सकता है।

महमूद ने एक जोर लगाया—वकील साहब कुरसी—मेज पर बैठेगे, तुम्हारा चिमटा तो बाबरचीखाने में जमीन पर पड़ा रहने के सिवा और क्या कर सकता है?

इस तर्क ने सम्मी और नूरे को भी सजी कर दिया! कितने ठिकाने की बात कही हे पट्ठे ने! चिमटा बावरचीखाने में पड़ा रहने के सिवा और क्या कर सकता है?

हामिद को कोई फड़कता हुआ जवाब न सूझा, तो उसने धॉँधली शुरू की—मेरा चिमटा बावरचीखाने में नही रहेगा। वकील साहब कुर्सी पर बैठेगें, तो जाकर उन्हे जमीन पर पटक देगा और उनका कानून उनके पेट में डाल देगा। बात कुछ बनी नही। खाल गाली-गलौज थी, लेकिन कानून को पेट में डालनेवाली बात छा गई। ऐसी छा गई कि तीनों सूरमा मुँह ताकते रह गए मानो कोई धेलचा कानकौआ किसी गंडेवाले कनकौए को काट गया हो। कानून मुँह से बाहर निकलने वाली चीज हे। उसको पेट के अन्दर डाल दिया जाना बेतुकी-सी बात होने पर भी कुछ नयापन रखती हे। हामिद ने मैदान मार लिया। उसका चिमटा रूस्तमे-हिन्द हे। अब इसमें मोहसिन, महमूद नूरे, सम्मी किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती।

विजेता को हारनेवालों से जो सत्कार मिलना स्वाभविक है, वह हामिद को भी मिल। औरों ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे खर्च किए, पर कोई काम की चीज न ले सके। हामिद ने तीन पैसे में रंग जमा लिया। सच ही तो है, खिलौनों का क्या भरोसा? टूट-फूट जाएँगी। हामिद का चिमटा तो बना रहेगा बरसों?

संधि की शर्ते तय होने लगीं। मोहसिन ने कहा—जरा अपना चिमटा दो, हम भी देखें। तुम हमार भिश्ती लेकर देखो। महमूद और नूरे ने भी अपने-अपने खिलौने पेश किए।

हामिद को इन शर्तो को मानने में कोई आपत्ति न थी। चिमटा बारी-बारी से सबके हाथ में गया, और उनके खिलौने बारी-बारी से हामिद के हाथ में आए। कितने खूबसूरत खिलौने हैं।

हामिद ने हारने वालों के ऑंसू पोंछे—मैं तुम्हे चिढ़ा रहा था, सच! यह चिमटा भला, इन खिलौनों की क्या बराबर करेगा, मालूम होता है, अब बोले, अब बोले।

लेकिन मोहसिन की पार्टी को इस दिलासे से संतोष नहीं होता। चिमटे का सिल्का खूब बैठ गया है। चिपका हुआ टिकट अब पानी से नहीं छूट रहा है।

मोहसिन—लेकिन इन खिलौनों के लिए कोई हमें दुआ तो न देगा?

महमूद—दुआ को लिय फिरते हो। उल्टे मार न पड़े। अम्मां जरूर कहेंगी कि मेले में यही मिट्टी के खिलौने मिले?

हामिद को स्वीकार करना पड़ा कि खिलौनों को देखकर किसी की मां इतनी खुश न होगी, जितनी दादी चिमटे को देखकर होंगी। तीन पैसों ही में तो उसे सब-कुछ करना था ओर उन पैसों के इस उपयों पर पछतावे की बिल्कुल जरूरत न थी। फिर अब तो चिमटा रूस्तमें—हिन्द हे ओर सभी खिलौनों का बादशाह।

रास्ते में महमूद को भूख लगी। उसके बाप ने केले खाने को दियें। महमून ने केवल हामिद को साझी बनाया। उसके अन्य मित्र मुंह ताकते रह गए। यह उस चिमटे का प्रसाद थां।


3

ग्यारह बजे गॉँव में हलचल मच गई। मेलेवाले आ गए। मोहसिन की छोटी बहन दौड़कर भिश्ती उसके हाथ से छीन लिया और मारे खुशी के जा उछली, तो मियॉं भिश्ती नीचे आ रहे और सुरलोक सिधारे। इस पर भाई-बहन में मार-पीट हुई। दानों खुब रोए। उसकी अम्मॉँ यह शोर सुनकर बिगड़ी और दोनों को ऊपर से दो-दो चॉँटे और लगाए। मियाँ नूरे के वकील का अंत उनके प्रतिष्ठानुकूल इससे ज्यादा गौरवमय हुआ। वकील जमीन पर या ताक पर हो नहीं बैठ सकता। उसकी मर्यादा का विचार तो करना ही होगा। दीवार में खूँटियाँ गाड़ी गई। उन पर लकड़ी का एक पटरा रखा गया। पटरे पर कागज का कालीन बिदाया गया। वकील साहब राजा भोज की भाँति सिंहासन पर विराजे। नूरे ने उन्हें पंखा झलना शुरू किया। आदालतों में खर की टट्टियाँ और बिजली के पंखे रहते हें। क्या यहाँ मामूली पंखा भी न हो! कानून की गर्मी दिमाग पर चढ़ जाएगी कि नहीं? बॉँस कापंखा आया ओर नूरे हवा करने लगें मालूम नहीं, पंखे की हवा से या पंखे की चोट से वकील साहब स्वर्गलोक से मृत्युलोक में आ रहे और उनका माटी का चोला माटी में मिल गया! फिर बड़े जोर-शोर से मातम हुआ और वकील साहब की अस्थि घूरे पर डाल दी गई।

अब रहा महमूद का सिपाही। उसे चटपट गॉँव का पहरा देने का चार्ज मिल गया, लेकिन पुलिस का सिपाही कोई साधारण व्यक्ति तो नहीं, जो अपने पैरों चलें वह पालकी पर चलेगा। एक टोकरी आई, उसमें कुछ लाल रंग के फटे-पुराने चिथड़े बिछाए गए जिसमें सिपाही साहब आराम से लेटे। नूरे ने यह टोकरी उठाई और अपने द्वार का चक्कर लगाने लगे। उनके दोनों छोटे भाई सिपाही की तरह ‘छोनेवाले, जागते लहो’ पुकारते चलते हें। मगर रात तो अँधेरी होनी चाहिए, नूरे को ठोकर लग जाती है। टोकरी उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ती है और मियाँ सिपाही अपनी बन्दूक लिये जमीन पर आ जाते हैं और उनकी एक टॉँग में विकार आ जाता है।

महमूद को आज ज्ञात हुआ कि वह अच्छा डाक्टर है। उसको ऐसा मरहम मिला गया है जिससे वह टूटी टॉँग को आनन-फानन जोड़ सकता हे। केवल गूलर का दूध चाहिए। गूलर का दूध आता है। टाँग जावब दे देती है। शल्य-क्रिया असफल हुई, तब उसकी दूसरी टाँग भी तोड़ दी जाती है। अब कम-से-कम एक जगह आराम से बैठ तो सकता है। एक टॉँग से तो न चल सकता था, न बैठ सकता था। अब वह सिपाही संन्यासी हो गया है। अपनी जगह पर बैठा-बैठा पहरा देता है। कभी-कभी देवता भी बन जाता है। उसके सिर का झालरदार साफा खुरच दिया गया है। अब उसका जितना रूपांतर चाहों, कर सकते हो। कभी-कभी तो उससे बाट का काम भी लिया जाता है।

अब मियाँ हामिद का हाल सुनिए। अमीना उसकी आवाज सुनते ही दौड़ी और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। सहसा उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चौंकी।

‘यह चिमटा कहॉं था?’

‘मैंने मोल लिया है।‘

‘कै पैसे में?

‘तीन पैसे दिये।‘

अमीना ने छाती पीट ली। यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुआ, कुछ खाया न पिया। लाया क्या, चिमटा!

‘सारे मेले में तुझे और कोई चीज न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया?’

हामिद ने अपराधी-भाव से कहा—तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैने इसे लिया।

बुढ़िया का क्रोध तुरन्त स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता हे और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना व्याग, कितना सदभाव और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा? इतना जब्त इससे हुआ कैसे? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गदगद हो गया।

और अब एक बड़ी विचित्र बात हुई। हामिद कें इस चिमटे से भी विचित्र। बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गई। वह रोने लगी। दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसूं की बड़ी-बड़ी बूंदे गिराती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता!

पंचपूरा की आवाज़

https://www.facebook.com/1054959041262526/posts/3163970727028003/

Friday, November 20, 2020

Salaam.Salaam kya hai? Salaam kise kahte hai? Salaam ka sahi Alfaaz.सलाम । सलाम क्या है ? सलाम किसे कहते हैं ? सलाम का सही अल्फाज।

  अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल लाहि व बरकातुह Assalamualaikum warahmatullahi wabarakatuhu  मेरे प्यारे दोस्तों,  आज हम जानेंगे सलाम के बारे में।...