नशा
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाही बरकातुह!
मेरे प्यारे दोस्तो
नशा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक विकराल समस्या बन चुकी है। हमारे समाज का भी एक बड़ा हिस्सा जो तकरीबन 30 करोड़ है इस बीमारी से ग्रसित है और यह तादाद बढ़ती जा रही है। यह ऐसी बीमारी है जो इन्सान के जिस्म और दिमाग के साथ उसके पूरे वजूद को तबाह कर देती है। उसकी ज़िन्दगी जानवरों से भी बदतर हो जाती है। नशा एक ऐसी बुराई है जिसमें इन्सान का अनमोल जीवन दुनिया में ही नर्क बन जाता है और वह मरने से पहले ही वह मर्णावस्था में चला जाता है। धीरे-2 यह हमारे समाज को निगलता जा रहा है, इस लानत से पूरे मुल्क में लाखों जाने चली जाती हैं और न जाने कितने घर-खेत उसके इलाज में बिक जाते हैं। अगर हमने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो बहुत देर हो जाएगी और आप को पता भी नहीं चलेगा कि कब आपका अपना भी कोई इसकी चपेट में आ गया।
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नशा क्या है?
वह नशीला पदार्थ जिसके सेवन से इन्सान को उसकी लत लग जाए, उसके अलावा कुछ और न सूझे, थोड़ी देर के लिए अक्ल काम करना बन्द कर दे, होश न रहे, खुद को सम्भालना मुश्किल हो जाए। नशीले पदार्थ दो तरह के होते हैं एक वह जो थोड़ी देर के लिए इन्सान की सूझ बूझ समाप्त कर दे और ज़्यादा सेवन से शारीरिक नुकसान हो, उसको नारकोटिक्स कहते हैं और दूसरा इन्सान को धीरे धीरे पागलपन की हद तक ले जाए, उसको साइकोट्रोपिक कहते हैं। शराब, भांग, चरस, गांजा, अफीम, स्मैक, कोकेन, ब्राउन शुगर वग़ैरह ऐसे ही नशीले पदार्थ हैं और कुछ नशे जैसे तम्बाकू, गुटका, सिगरेट और बीड़ी हैं जो बदमस्त तो नहीं करते लेकिन शारीरिक नुकसान करते हैं और लत लगा देते हैं। इन नशीले पदार्थों से हर वर्ग और जाति के लोग ग्रसित हैं। इन्सान की यह कमज़ोरी होती है कि वह इनका इस्तेमाल थोड़ा थोड़ा ही करता है लेकिन कुछ दिनों में वह इसका आदी बन जाता है और बात ज़हरीले इन्जेक्शन तक पहुंच जाती है।
नशे के व्यक्तिगत दुष्परिणाम
नशा एक ऐसा ज़हर है जो इन्सान की ज़िन्दगी को अन्दर से खोखला कर देता है। यह लानत इन्सान को उसकी इज़्ज़त, सेहत और खुशियों से वचिंत कर देती है। यह इन्सान के फ़ैसला करने की तमीज़ को छीन लेता है जिसकी वजह से वह अपना अच्छा बुरा नहीं जान पाता। नशा इन्सान के स्वभाव और व्यवहार को भी ख़राब कर देता है वह भुलक्कड़, चिड़चिड़ा, गुस्सैल, खुदगर्ज और लापरवाह बन जाता है जिससे उसके सगे भी उससे दूर होने लगते हैं और वह बिलकुल अकेला होकर रह जाता है और अकसर वह धोका, चोरी और दूसरे अपराध की तरफ़ भी चला जाता है।
परिवारिक दुष्परिणाम
नशा करने वाले को लगता है कि यह सिर्फ उसका मामला है लेकिन यह उसके पूरे परीवार की जड़ों को खोखला करता है। वह प्यार जो कभी उसके घर में खुशबू की तरह महकता था अब नफरत और मायूसी में बदल जाता है। आए दिन बीवी बच्चों से मार-पीट आम बात हो जाती है। वह मासूम बच्चे जो अपने पिता के प्यार और दुलार के इन्तिजार में होते हैं एक लापरवाह और खुदगर्ज इन्सान का सामना करते हैं। यह कैसी तबाही है जिसे इन्सान खुद अपने हाथों से अपने घर में ले आता है। भला कोई चाहेगा कि अपने ही हाथों से अपने घर में आग लगा दे और उसमें उसके बीवी बच्चे झुलस जाएं ? हरगिज़ नहीं ! लेकिन नशा ऐसी ही तबाही लाता है जिसे नशा करने वाला समझ नहीं पाता। नशे की लत से इन्सान पहले तो अपनी कमाई का ज़्यादातर हिस्सा नशे पर खर्च कर देता है उसके बीवी बच्चे छोटी छोटी ज़रूरतों के लिए तरसते रहते हैं। उनकी सारी खुशियां छिन जाती हैं और एक समय ऐसा आता है जबकि वह कुछ भी नहीं कमा पाता और खुद अपने घर वालों पर बोझ बन जाता है। नशा करने वालों के बच्चे अपने पिता की ऐसी हालत देख कर दिमाग़ी तनाव से ग्रसित हो जाते हैं। उन्हें अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए न जाने क्या क्या करना पड़ता हैं। पढ़ाई लिखाई और परवरिश से वंचित होकर वह भी उसी डगर पर चल पड़ते हैं।
सामाजिक दुष्परिणाम
कश लगाता देख कर आज का नवजवान खुद को रोक नहीं पाता। फैशन और मार्डन बनने के नाम पर अधिकतर नवजवान नशे का शिकार हो रहे हैं। सिगरेट नुमा टॉफी और मीठी सुपारी खिलाकर और कोल्ड ड्रिंक के नाम पर पॉवर बूस्टर वगैरह पिलाकर बच्चों को पहले से ही इन ख़तरनाक चीज़ों से मुहब्बत पैदा करा दी जाती है। नवजवान देश का भविष्य होते हैं और समाज की तरक्की में अहम भूमिका निभाते हैं। नशे में लिप्त नवजवान अनपढ़ और बेरोज़गारी की वजह से अपराध की तरफ आकर्षित होते हैं। जिससे समाज में चोरी, राहजनी, आवारागर्दी, बलात्कार और हत्या आम बात हो जाती है। लड़के-लड़कियां नशा करने के खर्च को पूरा करने की लिए अपने घरों से पहले चोरियां करते हैं और अगर इससे भी बात नहीं बनती तो देह व्यवपार में भी चले जाते हैं। भला यह कैसे सम्भव हो सकता है कि कोई समाज तरक्की करे जबकि उस समाज की युवा पीढ़ी नशे जैसी लानत में लिप्त हों ?
इसलामी शिक्षाएं और इसका हल
इसलाम ने नशे को उम्मुल ख़बाइस और उम्मुल फहाइश बताया है। यानि नशा तमाम शैतानी काम, घिनावने जुर्म की और तमाम बेशर्मी के कामों की जननी है। ऊपर बताई गई तमाम बुराइयां सिर्फ और सिर्फ नशा करने का ही दुष्परिणाम हैं। पवित्र कुरआन नशे को न केवल हराम बल्कि नापाक बताता है। यानि यही नहीं कि इसको इस्तेमाल करने से बचा जाए बल्कि इससे नफरत करते हुए दूर भी रहा जाए। खुदा ने इन्सान को बेकार नहीं पैदा किया कि वह बाकी तमाम जानवरों की तरह खाए पिए और मर जाए बल्कि उसके लिए एक महान उददेश्य है जिसकी वजह से वह तमाम प्राणियों में सबसे श्रेष्ठ है। उसका असल जौहर उसकी नैतिकता, इन्सानियत, चरित्र और आचरण है, नशा । उससे यह सब छीन कर उसको जानवरों की श्रेणी में ले आता है।
शराब नहीं उसकी ज़्यादती गलत है?
यह तर्क अकसर नशा करने वाले देते हैं। कहते हैं कि हर चीज़ चाहे पानी हो या खाना उसका बहुतायत घातक है। इसलिए मादक पदार्थ भी थोड़ी मात्रा में सही है, हां उसका बहुतायत घातक है। शराब और दूसरे मादक पदार्थों के साथ खाने पीने की चीज़ो की तुलना करने का तर्क जहालत पर आधारित है। शराब और दूसरे मादक पदार्थ इस लिए नहीं हराम हैं कि उनका बहुतायत गलत है बल्कि वह पदार्थ सेहत, मानसिकता और आचरण को खराब करते हैं इसलिए नापाक, गन्दे और शैतानी हैं। क्या कोई व्यक्ति किसी ऐसे पदार्थ को जिसको वह गन्दा समझता हो, एक बूदं को तो सही जाने और एक गिलास को गलत? हरगिज़ नहीं! इसलिए पैगम्बरे इसलाम ने बताया कि जो पदार्थ बड़ी मात्रा में नशा पैदा करते हैं उसकी कम मात्रा भी हराम है (हदीस)। क्यूंकि आमतौर पर यही होता है कि हर नशे का गुलाम, उसकी शुरुआत थोड़ी मात्रा से ही करता है।
गुटका तम्बाकू से नशा नहीं होता
अकसर गुटका, तम्बाकू और सिगरेट वाले यह तर्क देते हैं कि इन चीज़ों से हम बदमस्त नहीं होते लिहाजा यह चीजें नशावर नहीं होती। आप उनको समझाइये जो बड़ा नशा करते हैं।... यह बात तो पहले ही बताई जा चुकी है कि नशावर चीजें सिर्फ अपने नशे के लिए ही नहीं बल्कि उसके दुष्परिणाम यानि शारीरिक व मानसिक, स्वास्थ्य की हानि के लिए भी ग़लत हैं, इसीलिए शैतानी काम हैं। जिस तरह आप शराब पी कर मन्दिर-मस्जिद, स्कूल-कालेज या किसी अधिकारी क सामने नहीं जा सकते उसी तरह आप पान, गुटका सिगरेट भी चबाते हुए नहीं जा सकते, यह अच्छे आचरण के भी ख़िलाफ है। दूसरी बात अगर आप इसको सेहत के लिए अच्छा समझते हैं और कहते हैं कि इससे नशा नहीं होता तो खुद भी सेवन कीजिए और अपने बच्चों को भी लाकर दीजिए। हर साल पूरी दुनिया में 80 लाख और पूरे भारत में 10 लाख मौतों की वजह तम्बाकू ही है चाहे वह खैनी, गुटका या सिगरेट के रूप में हो और यह आंकड़े शराब और उस जैसे दूसरे नशीले पदार्थो से कहीं ज़्यादा है।
नशेवर पदार्थों पर सम्पूर्ण पाबन्दी
पैगम्बरे इसलाम ने फर्माया कि शराब से जुड़े हुए दस लोग बराबर के लानती हैं 1. अपने लिए बनाने वाला 2. दूसरों के लिए बनाने वाला 3. पीने वाला 4. पिलाने वाला 5.पहुंचाने वाला 6. जिसको पहुंचाई जाए 7. बेचने वाला 8. ख़रीदने वाला 9. किसी को भेंट देने वाला और 10. इसकी कमाई खाने वाला। जब इसलाम ने शराब और नशे को हराम किया तो जो लोग नशा करते थे उन्होने अपने घरों की सारी शराब फेंक दी और साथ में उन बर्तनो को भी फेंक दिया जिसमें वह रखी, परोसी, पी और पिलाई जाती थी।
यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है
कि देश के शासक एक तरफ तो नशा विरोधी अभियान चलाते हैं, सिगरेट-तम्बाकू पर कैन्सर की चेतावनी छपवाते हैं और दूसरी तरफ़ शराब बेचने के परमिट भी दिए जाते हैं और इस के ऊपर भारी टैक्स लगाकर मोटी कमाई भी करते है। क्या इस तरह से समाज सुधार होगा? याद रखिए इस लानत से हमें अपने को और अपने प्यारों को खुद ही बचाना होगा।
आइये !
हम संकल्पित हों कि अपने देश को नशा मुक्त कर के एक बेहतर समाज बनाएंगें और अपने खुदा को राज़ी करने की कोशिश करेंगें ।
सौजन्य से :
وحدت اسلامی ہند زیر اہتمام
WAHDAT-E-ISLAMI
वहदत-ए-इस्लामी हिन्द पूरबी यू.पी.
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Nadeem Arif
Varanasi
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